Type Here to Get Search Results !

Nobel Prize Winners 2021

Target Hssc Haryana vikash poonia


        नोबेल पुरस्कार 2021

नोबेल प्राइज 2021- इतिहास और पुरस्‍कार की रोचक कहानी.
अल्फ्रेड नोबेल की अनोखी जीवनी

—————–
बात है आज से ठीक 133 साल पहले यानी 1888 की। अल्फ्रेड नोबेल ने एक न्यूज पेपर में अपना नाम ऑबिच्युरी वाले पेज पर देख लिया यानी जिसपर लोगों की मृत्यु से जुड़े समाचार या विज्ञापन होते हैं। उसमें लिखा था कि डायनामाइट किंग एंड मर्चेंट ऑफ डेथ इज डेड अर्थात डायनाइट राजा और मौत के सौदागर की मृत्यु हो गई है। वो हैरान और परेशान हो गए और जब तक कुछ करते तब तक यानी अगले दिन अखबार ने अपनी गलती मानते हुए पाठकों से माफी मांग ली। दरअसल मृत्यु उनके भाई लुडविग की हार्ट अटैक से हुई थी जिसे नाम में एकरूपता की वजह से उनकी मृत्यु समझ लिया गया था। लेकिन तब बात आई-गई नहीं हो गई क्योंकि अल्फ्रेड नोबेल को इस घटना ने भीतर तक झकझोर दिया।

———–
– अपने मरने की खबर पढ़कर नोबेल डर गये, घंटों मरने के ख्याल में ही खोये रहे, कुछ था जो उन्हें झकझोर रहा था, दरअसल वो इस सोच में डूब गये कि वाकई
– “कल को जब वो नहीं रहेंगे तो लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे, किस रूप में उन्हें याद करेंगे, याद करेंगे भी या नहीं”
– “जब लोग एक दिन मृतकों के नाम वाले पेज पर उनका नाम पढ़ेंगे तो क्या सोचेंगे कि… डायनामाइट वाला मर गया, मौत का सौदागर चल बसा या फिर कहेंगे कि चलो मौत का व्यापारी भी गया”
– “क्या दुनिया इसी नाम से, इसी उपमा से और इसी पहचान से हमें जानेगी । नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं कम से कम इस तरह से याद रहने वाला नहीं बनूंगा”…. और उन्होंने फैसला लिया कि अब शांति के लिए काम करूंगा”
इस घटना ने उन्हें अपना पुनर्मूल्यांकन करने पर मजबूर किया और उनकी अंतरात्मा को हिला कर रख दिया। बस यही वो टर्निंग प्वाइंट था जहां से एक नये, रचनात्मक और कालजयी विचार ने जन्म लिया। हम इस घटना की सत्यता की पुष्टि तो नहीं करते लेकिन ऐसी ही कुछ घटनाओं के बाद उन्होंने अपनी फाइनल वसीयत लिखी, इससे पहले वो कई वसीयत लिख चुके थे। 1895 उन्होंने अपनी आखिरी वसीयत यानी WILL में जो लिखा वो आज भी एक जिंदा सच के रूप में सामने है।

————
वसीयत में उन्होंने लिखा….
“मेरी मृत्यु के बाद मेरी धन-संपत्ति को सुरक्षित ऋणपत्रों यानी सिक्योरिटी बॉण्ड्स में जमा किया जाये और उससे मिलने वाले ब्याज से हर साल मानवता की भलाई के लिए नई खोज करने वाले पांच विषयों के विश्व स्तरीय विद्धानों को पुरस्कार दिये जायें। मेरी 94 प्रतिशत से ज़्यादा संपत्ति के मलिक वो लोग है जिन्होंने मानव जाति के लिए विभिन्न क्षेत्रों में उत्तम कार्य किया है। उम्मीदवारों की राष्ट्रीयता पर कोई विचार नहीं किया जाना चाहिए और सबसे योग्य को पुरस्कार प्राप्त हो, चाहे वह स्कैंडिनेवियाई हो या नहीं।”
उत्तरी यूरोप में आने वाले देशों को स्कैंडिनेवियाई देश कहते हैं इनमें नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड और आइसलैंड हैं।

————-
दरअसल, डायनामाइट और जिलेटिन के अविष्कार के वक्त नोबेल ने सोचा था कि इसके विनाश को देखकर लोग डर जाएंगे और कभी युद्ध नहीं करेंगे। डायनामाइट दुनिया में शांति के लिए होने वाले हजारों सम्मेलनों से भी जल्दी शांति ला देगा। उनकी इस इच्छा की पुष्टि उसकी एक मित्र लेखिका और एंटी वॉर एक्टिविस्य Bertha von Suttner ने अपने फ्रेंच नॉवेल Die Waffen nieder! या अंग्रेजी में बोलें तो Lay Down Your Arms! में की है। लेकिन हुआ इसका उल्टा। युद्ध तो रुके नहीं बल्कि इसका उपयोग दुश्मन को बर्बाद करने के लिए युद्ध में भी होने लगा। ये देखकर नोबेल को बहुत दुख हुआ और वो अपने अविष्कार के भविष्य में और भी घातक उपयोग को लेकर चिंतित हो उठे थे। तब से उनके मन में कहीं न कहीं ये बात थी और वो इस दिशा में कुछ करने की सोच रहे थे। न्यूज पेपर में अपनी मृत्यु की झूठी खबर के उपजे विचार ने नोबेल पुरस्कार की शुरुआत करवाई, जो आज 120 साल बाद भी जारी है। इस तरह एक पश्चाताप के प्रायश्चित के रूप में शुरु हुए नोबेल पुरस्कार।
Vikash poonia 
style="color: #2b00fe; font-weight: bold;">
————-
अल्फ्रेड बर्नेहार्ड नोबेल:
अल्फ्रेड नोबेल सिर्फ एक रसायन विज्ञानी और इंजीनियर नहीं थे बल्कि बहुमुखी प्रतिभा वाले थे।
उन्होंने कविताएं और नाटक तो लिखे ही अंग्रेजी, रूसी, फ्रेंच और जर्मन भाषा भी सीखी।
एक और खास बात कि स्कूल-कॉलेज की बजाय उन्होंने ज्यादातर पढ़ाई-लिखाई घर से की।
अविष्कारों से उन्हें अपार धन-दौलत मिली और वो 100 फैक्ट्रियों के मालिक भी बन गये थे।
जगह-जगह घूमना, नई जानकारियां जुटाना और कुछ नया करना उनके शौक थे।

————-
नोबेल पुरस्कार की शुरूआत:-
उन्नीसवीं सदी के पहले साल यानी 1901 से नोबेल पुरस्कार शुरू हो गये। नोबेल पुरस्कार शरीर क्रिया विज्ञान या चिकित्सा, रसायन, भौतिकी और आदर्शवादी साहित्य और विश्व शांति शुरु हुआ? यही वह विषय भी हैं जिनका अध्य्यन नोबेल ने घर पर रहकर किया। 1969 में इसमें अर्थशास्त्र भी जुड़ गया और अब तक करीब 970 लोगो को 610 पुरस्कार मिल चुके हैं।

नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय👇


रवीन्द्र नाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) – 1913
रवीन्द्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार 1913 में साहित्य के लिए दिया गया था। रविन्द्र नाथ का जन्म 7 मई 1861 में हुआ था। वह मुख्य रुप से कवि, संगीतकार, गीतकार, कहानीकार, चित्रकार, नाटककार और निबंधकार के रुप में जाने जाते है। रवीन्द्र नाथ को यह पुरस्कार उनके कविताओं की किताब गीतांजली के लिए दिया गया था।

 

चन्द्रशेखर वेंकट रमन (Sir Chandrasekhara Venkata Raman) – 1930
सर वेंकट रमन वह पहले भारतीय है जिन्हे भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। तमिलनाडु में जन्मे इस महान पुरुष को यह पुरस्कार 1930 में मिला था। वेंकट रमन को उनके विज्ञान जगत के आविष्कार जिसे हम रमन इफेक्ट से जानते है उनके लिए दिया गया था।

 

हर गोविन्द खुराना (Har Gobind Khorana) -1968
हर गोविन्द खुराना को नोबेल पुरस्कार चिकित्सा के क्षेत्र में मिला था। इन्होने इलेक्ट्रॉन पर काम किया था और जेनेटिक कोड की व्याख्या और प्रोटिन संश्लेषण में इसकी भूमिका का पता लगाया था जिस वजह से उन्हे इस महान पुरस्कार से नवाजा गया था।

 

मदर टेरेसा (Mother Teresa) – 1979
मेसिडोनिया में जन्मी इस महान नारी ने अपना पूरा जीवन कलकत्ता में गरीबो की देख भाल में लगा दिया। गरीबी हटाने के लिए उन्होने मिशन ऑफ चैरेटि की स्थापना की। इतना ही नही उन्होने कुष्ठ रोगियो और ड्रग्स के लत के शिकार बने लोगो के लिए निर्मल हृदय नामक संस्था की भी स्थापना की थी। साल 1979 में उन्हे शान्ति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

 

सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर (Subrahmanyan Chandrasekhar) – 1983
सुब्रमण्यम चन्द्रशेकर, वेंकट रमन के भतीजे थे, उन्होने अपनी शिक्षा चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज से पूरी की और फिर बाद में अमेरिका चले गए, वहाँ जाकर उन्होने सौरमण्डल और खगोलीय भौतिक शास्त्र सम्बंधित विषयों के बारे में अनेक किताब लिखी। उन्हे साल 1983 में भौतिक शास्त्र में नोबेल पुरस्कारसे नवाजा गया था।

 

अमर्त्य सेन (Amartya Sen) – 1998
अमर्त्य सेन का जन्म पश्चिम बंगाल में 1933 में हुआ था, इन्होने अपनी शिक्षा बंगलादेश की राजधानी ढाका से पूरी की थी। इन्होने देश एवं विदेश अनेक कॉलेजो में पढाया है और साथ ही साथ विकास और कल्याण पक्षो पर अनेक पुष्तकें लिखी। केवल भारत के नही बल्कि पूरे एशियाई देशो में अमर्त्य सेन वह पहले इन्सान है जिन्हे अर्थशास्त्र के लिए 1998 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

 

वी एस नायपॉल (VS Naipaul) – 2001
वी एस नायपॉल का जन्म भले ही ट्रिनिदाद में हुआ था लेकिन वह मूल निवासी भारत के थे। बाद में वे ब्रिटेन चले गये और वही की नागरिकता ले ली। नोबेल पुरस्कार से पहले उन्हे ब्रुकर प्राइज और फिर 1990 में ब्रिट्रेन की सरकार नें उन्हे नाइटहुड से सम्मानित किया। साल 2001 में उन्हे साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

 

राजेन्द्र कुमार पचौरी (Rajendra Kumar Pachauri)- 2007
आर के पचौरी को नोबेल पुरस्कार साल 2007 में जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में मिला था। दरअसल उनका रिसर्च जलवायु परिवर्तन पर था और 2007 में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन की कमेटी के साथ संयुक्त रुप से इस पुरस्कार से नवाजा गया था।

 

वेंकट रामाकृष्णन (Venkatraman Ramakrishnan)- 2009
वेंकट रामाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु में 1952 मे हुआ था, यह पढे लिखे घर से ताल्लुक रखते है। उन्हे राइबोजोम की संरचना और उसके कार्यप्रणाली के शोध में रसायन विज्ञान में साल 2009 में नोबेल पुरस्कार मिला।

 

कैलाश सत्यार्थी (Kailash Satyarthi)- 2014
कैलास सत्यार्थी को बाल मजदूर के उन्मोलन और बच्चो के शिक्षा के अधिकार के लिए साल 2014 में नोबेल पुरस्कार मिला था। सत्यार्थी अपनी इन्जीनियरिंग की पढाई पूरी करके शिक्षा के क्षेत्र से जुङ गए। उन्होने छोटे बच्चो के बाल मजदूरी और बंधुआ मजदूरो के लिए आवाज उठाई थी।

 

अभिजीत बनर्जी (Abhijit Vinayak Banerjee) – 2019
साल 1961 में जन्मे अभिजीत बनर्जी ने अपनी शिक्षा कलकत्ता यूनिवर्सिटी और जेएनयू से पूरी की फिर बाद में वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। उन्हे 2019 में गरीबी हटाने के क्षेत्र में काम करने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला, इतना ही नही यह पुरस्कार उनके साथ साथ उनकी पत्नी को भी मिला है। इसी के साथ नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वह दशवें भारतीय बन चुके है।


2021 का नोबेल पुरस्कार👇














  नीचे कमेंट करें धन्यवाद


Pdf download 


Click Here

 

Wabsite

Click Here


Telegram group

Click Here


Twitter🐦🐦

Click Here




Post a Comment

0 Comments

Multiple